- सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं
- बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना धाम में लगभग चार सौ सालों से चली आ रही है
- शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं
पन्ना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ पन्ना धाम में आज सोमवार को देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालु सुंदर साथ में एक साथ नगर के बाहरी हिस्से में जंगल होते हुए परिक्रमा लगाकर अपने आप को धन्य महसूस किया। प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं।
यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं।
सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना धाम में लगभग चार सौ सालों से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर पन्ना में प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।
इस पुनीत धारा के जंगल, पहाड़ प्राणनाथ प्यारे के जयकारों से गूंज उठे
मंदिरों की नगरी पन्ना में सोमवार 27 नवंबर को पृथ्वी परिक्रमा में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु (सुन्दरसाथ) पन्ना पहुँचे, जिससे आज पूरे दिन मंदिरों के शहर पन्ना में पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पन्ना पहुंचे ये श्रद्धालु परम्परानुसार पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। यहां के जंगल, पहाड़ आज प्राणनाथ प्यारे के जयकारों से गूंज उठे।
विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख भी देती है यह अनूठी परंपरा
प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है।
महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में कार्तिक पूर्णिमा को हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा करने की परंपरा है, जिसका निर्वहन आज भी हो रहा है।
परिक्रमा की दूरी करीब 20 किलोमीटर के आसपास होती है
चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लगता है। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 20 किलोमीटर के आसपास होती है।
पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर व अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर पहुंचता है। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखते हैं।
खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती व प्रसाद वितरण होता है। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ उसी स्थान पर पहुंचते हैं जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।
देखने जैसा है कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य
पन्ना शहर से बमुश्किल तीन-चार किलोमीटर दूर स्थित कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य देखने जैसा है। यदि इस प्राकृतिक सेहा तक सुगम मार्ग व यहां सुरक्षा के जरूरी इंतजाम करा दिए जाएं तो मानसून सीजन के अलावा भी पूरे वर्ष भर यह स्थल पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। राकेश शर्मा (58 वर्ष) निवासी पन्ना बताते हैं कि सामान्य दिनों में यहां सन्नाटा पसरा रहता है और झरने के सुुुमधुर संगीत के बीच वृक्षों में कुल्हाड़ी चलने की आवाजें गूंजती हैं, जिससे यहां का माहौल बेहद डरावना प्रतीत होने लगता है। यदि यह स्थल विकसित हो जाए तो अवैध कटाई सहित अन्य गैरकानूनी गतिविधियों पर जहां रोक लग सकती है।